Book Title: Vallabh Bharti Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Khartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray

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Page 219
________________ उपसंहार रससिद्धकवीश्वर गीतार्थप्रवर प्रबल क्रान्तिकारी आचार्यश्रेष्ठ श्री जिनवल्लभसूरि के कृतित्व की प्रशंसा करते हुए जहां दादा जिनदत्तसूरि इन्हें महाकवि कालीदास, माघ, वाक्पतिराज से भी अधिक उच्चकोटि का महाकवि और सुविहित चारित्र-चूडामणि युगप्रवर मानते हैं, वहीं जिनपालोपाध्याय के वचनों में सुविद्यावनिताप्रिय जिनवल्लभ की कीत्तिहंसी आज भी प्रसन्न चित्त से गुणिजनों के मानस में रमण कर रही है । ऐसे आगमज्ञ जिनवल्लभ के व्यक्तित्व और कृतित्व पर मेरे जैसे अज्ञ का समीक्षात्मक अध्ययन लिखना 'पंगु गिरि लंघे' के समान ही है फिर भी प्रयत्न कर जो कुछ मैंने लिखा है वह आचार्य जिनवल्लभ की कृपा और आशीर्वाद का ही सुफल है । अतः षडशीति के टीकाकार श्री यशोभद्रसूरि के शब्दों को उद्ध त करता हुआ मैं आचार्य जिनवल्लभ के चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करता है। क्वासौ श्रीजिनवल्लभस्य रचना सक्ष्मार्थचर्चाञ्चिता, क्वेयं मे मतिरग्रिमाप्रणयिनी मुग्धत्व पृथ्वीभुजः। पङ्गोस्तुङ्गनगाधिरोहणसुहृद्यत्नोयमार्यास्ततोऽसद्ध्यानव्यसनावे निपततः स्वान्तस्य पोतोपितः। १८४ । वल्लभ-भारती

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