Book Title: Vallabh Bharti Part 01
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Khartargacchiya Shree Jinrangsuriji Upashray

View full book text
Previous | Next

Page 172
________________ अध्याय : ६ जिनवल्लभ की साहित्य-परम्परा टीका-ग्रन्थ और टीकाकार आचार्य जिनवल्लभसूरि के ज्ञान-गांभीर्य तथा सुधार-कार्य का जो सुदृढ़ और स्थायी प्रभाव विद्वन्मण्डली पर पड़ा उसका सब से बड़ा प्रमाण उनके ग्रन्थों पर लिखी गई अनेक टीकायें हैं । उनकी मृत्यु के लगभग तीन वर्ष उपरान्त से लेकर शताब्दियों पर्यन्त तक इनके ग्रन्थों पर जितनी टीकायें लिखी गई उतनी संभवतः किसी भी जैनाचार्य की कृतियों पर, नहीं । इन टीकाओं की सब से बड़ी विशेषता यह है कि इनके रचयिता प्रायः खरतरगच्छ तर विद्वान् साधु ही थे। अतः इनकी रचना न केवल जिनवल्लभसूरि के ग्रन्थों का साहित्यिक, धार्मिक एवं सामाजिक महत्त्व प्रकट करती है, अपितु यह भी प्रमाणित करती है कि ये ग्रन्थ संप्रदाय के सीमित क्षेत्र से ऊपर उठ कर सर्वमान्यता तथा सर्वग्राह्यता प्राप्त कर चुके थे। उनके ग्रन्थों में सब से अधिक गौरव इस दृष्टि से जिनको प्राप्त हुआ वे सार्द्धशतक, षडशीति एवं पिण्डविद्धि हैं। इन पर टीका लिखने वालों में धनेश्वराचार्य, हरिभदाचार्य, मुनिचन्द्राचार्य, श्रीचन्द्राचार्य, यशोदेवाचार्य तथा मलयगिरि आचार्य जैसे बड़े-बड़े दिग्गज विद्वानों के भी नाम हैं जो अपने पाण्डित्य तथा गांभीर्य के लिये जैन इतिहास में प्रसिद्ध हो चुके हैं और जिनका टीका लिखना ही मूलग्रन्थों की महत्ता को प्रकट करने के लिये पर्याप्त है। अतः यहां पर टीकाओं और टीकाकारों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है: ग्रन्थों पर टीकायें सूक्ष्मार्थ-विचार-सारोद्धार (सार्द्ध शतक) भाष्य' टिप्पण रामदेवगणि . चूणि मुनिचन्द्रसूरि लींबड़ी, बड़ौदा और पाटण के भंडारों में है। सम्भवतः प्रकाशित नहीं हुआ है। इसके कर्ता कौन हैं ? निश्चित नहीं कहा जा सकता । इसका पाद्यन्त भाग इस प्रकार है:(प्रा.) नियहेउसम्भवे विह भयरिणज्जो जाण होइ पयडीणं । बंधो वा अधूवा""अभयरिणज्ज बंधारो। (अं०) तिरिगइसममुज्जोयं इगजाइसमं तु प्रायवे बंधे । परघा उस्सासाणं पज्जेण समं भवे बंधो ।१०६। वल्लभ-भारती ] [ १३७

Loading...

Page Navigation
1 ... 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244