Book Title: Vajradant Chakravarti Barahmasa
Author(s): Nainsukh Yati, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Kundalata and Abha Jain

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Page 16
________________ हेआत्मन! अब तो चेत (आ. अम्मा जी द्वारा स्वहस्तलिखित आत्मसम्बोधन ) T मालन र जाता है पर A च्या नाता है, -परा लेना हना है बार में मार रहा न्हारा माल्मन् नजर नर र नररा - 7 साल्मन | भगने में सी) पेझर पनि मानन्द प्यन स्वस | मंदर अ मर कर रॐ सत्य हो । ल्या र माटर ,हिरोमा परी 7 मालन नई अपने मानन्द प्पन स्वस ॐ, न मानन्द स्मुद्र * उतरने ,चर भबिर, अपनर ज्ञानानन्द सत्र तुम्हा बुला रट हैं। लाटर हार देर । " सन्तामा मनोन्यन ते जामी, सावधान रख सीधा सा महाल एई र नाल र मालबाट से बाहर लगे मम्हे रे, मंदर स्र शादी कर समुद्र न्यू व ए, उसमें मान उरलं वाकयाँ लगानी 7 साल्मन सपने में हैं, बाघ पर रखा न्हारा? पर भर, साबयान पर असर रह 27 है माल्लन्। हेराल्पा , an ama8R, प्याना है मामना विष्ट होत * स्थित श्रीलंदर मsan पनि सिध्द करण्यात रस व मत देखो। ? सामन रू प पखता सलमा में नर रेखो , देखो, भीतर पेय , सिध्द खुला हे सिध्दों पल में जाकर लेला हवस सन मान, बिल्कुल रुवान )पर रह र २ भलार, न स्वान -२ मंचर प्रो गए बाहरी ? मालन स्वगाव * . स्वास्,ि स्वर रहो। मोहर 28 रम जार, जन ज बER जानवर परी उतर जाम नाम रखा 8 खतया हमारे और तर , पर € अंदर उतरते असो, र चारर दोपर, मई गहरे, गहरे गर, मोर गारो परे, कर गहरे, उमेश है जो, नही रह जीऔर प्रीतम रिल्ला मानन्द ४, लवालल मानन्द भरा ४, मानन्, साजन्य ४।। १४

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