Book Title: Vajradant Chakravarti Barahmasa
Author(s): Nainsukh Yati, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Kundalata and Abha Jain

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Page 24
________________ श्रावण मास दूसरा पिता चौपाई सावन पुत्र कठिन बनवास । जल थल शीत पवन के त्रास । जो नहिं पले साधु आचार । तो मुनि भेष लजावैं सार ।। अर्थः- हे पुत्रों ! जिसमें सारी पथ्वी जलमय हो जाती है और शीतल पवन का बहुत त्रास भोगना पड़ता है ऐसे सावन के महिने में वनवास कठिन होता है और ऐसे में यदि साधु के आचार (दिगम्बर मुनि की आगमोक्त चर्या) का पालन न हो पाए तो तीनों लोकों में सार रूप यह दिगम्बर मुनि का वेष लजाया जाता है। गीता छंद लाजे श्री मुनि वेष सम्यक्त्व युत व्रत पंच हिंसा असत् चोरी परिग्रह, अब्रह्मचर्य सुटार के । कुल आपने की रीति चालो, राजनीति विचार के ।। अर्थः- क्योंकि साधु का आचार नहीं पलने पर मुनिवेष का अपयश होता है इसलिए तुम देह की संभाल करो, सम्यक्त्व युक्त अहिंसादि पाँच व्रतों में हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील व परिग्रह पापों को टालकर महाव्रतों के स्थान पर देशव्रत की ही धारणा मन में धारण करो और राजनीति के अनुसार राज्य करके अपने कुल की रीति का अनुसरण करो । (पुत्र) तातैं, देह का साधन में तुम, देशव्रत मन में चौपाई पिता अंग' यह हमरो नाहिं । भूख-प्यास पुद्गल परछाहिं । पाय परीषह कबहुँ न भजें । धर संन्यास मरण तन तजैं ।। अर्थः- हे पिता ! यह शरीर हमारा नहीं है और भूख-प्यास तो पुद्गल की छाया है, परिषहों को पाकर हम कभी भी भागेंगे नहीं और संन्यासमरण धारण करके इस देह को छोड़ देंगे । BBB गीता छंद तजें, नहिं करो । धरो । दंशमंशक से डरें । संन्यास धर तन कूं रहें नग्न तन वन खंड में, जहाँ मेघ मूसल जल परैं । तुम धन्य हो बड़भाग तज के, राज तप उद्यम किया । तुम समझ सोई समझ हमरी, हमें न प पद क्यों दिया । । अर्थः- हम तन को संन्यास धारण करके तज देंगे और मच्छरों के काटने (दंशमशक परीषह) से डरेंगे नहीं, वनखंड में हम नग्न तन रहेंगे जहाँ मेघों का मूसलाधार जल शरीर पर पड़ेगा। हे बड़भागी पिता ! आप धन्य हैं जो राज्य को छोड़कर तप का उद्यम कर रहे हैं परन्तु जो आपकी समझ है सो ही हमारी भी समझ है, हमें आप राज्यपद क्यों दे रहे हैं ! अर्थः- १. शरीर । २. मच्छरों का काटना । T २३

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