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पिहितास्रव को केवलज्ञान
जेठ-मास बारहवाँ
चौपाई
जेठ मास लू ताती' चले। सूखे सर कपिगण' मद गले। ग्रीषम काल शिखर के शीस । धरो अतापन योग मुनीश ।। अर्थः- जेठ मास में गरम लुएँ चलती हैं तब सरोवर सूख जाते हैं और बन्दरों के समूहों का भी मद गल जाता है-ऐसे ग्रीष्म काल में पर्वत के शिखर केशीस पर मुनीश पिहितास्रव ने आतापन योग धारण किया । गीता छंद
धर योग आतापन सुगुरु ने शुक्ल तिहुं लोक भानु र समान, केवलज्ञान धनि वज्रदन्त मुनीश जग तज, कर्म निज काज अरु परकाज करके, समय में शिवपुर गये । ।
के
सन्मुख
भये ।
अर्थः- आतापन योग को धारण करके सुगुरु ने जब शुक्ल ध्यान लगाया तो तीनों लोकों को प्रकाशित करने के लिए सूर्य के समान केवलज्ञान उनके प्रकट हुआ। वे वज्रदन्त मुनीश धन्य हैं जो संसार को तजकर मुनि के आचारकर्म के सन्मुख हुए और अपने व दूसरों के कल्याण के कार्य को करके समय आने पर मोक्ष को गये । चौपाई
सम्यक्त्वादि सुगुण आधार । भये निरंजन निर आकार ।
आवागमन तिलांजलि दई । सब जीवन की शुभ गति भई ।।
ध्यान
तिन
३४
लगाइयो ।
प्रगटाइयो ।
अर्थः- सम्यक्त्व आदि सुगुणों के आधार से आवागमन को तिलांजलि देकर वे वज्रदंत मुनीश कर्म रहित और निराकार हो गये और अन्य शेष दीक्षा धारण करने वाले सब जीवों की भी शुभ गति हुई ।
गीता छंद
भई शुभगति सबन की जिन, शरण जिनपति की लई । पुरुषार्थ सिद्धि उपाय से, परमार्थ की सिद्धि भई । जो पढ़े बारहमास भावन, भाय चित्त हुलसाय
के ।
तिनके हों मंगल नित नये, अरु विघ्न जांय पलाय के ।। अर्थः- जिन्होंने भी जिनेन्द्र भगवान की शरण ली उन सब ही जीवों की शुभ गति हुई और पुरुषार्थ की सिद्धि के उपाय से उन्हें उत्क ष्ट प्रयोजन मोक्ष की सिद्धि हुई। जो भी जीव इस बारहमासे को पढ़ते हैं और चित्त को उल्लसित करके इसकी भावना भाते हैं उनके नित्य ही नवीन मंगल होते हैं और विघ्न भाग जाते हैं ।
अर्थः- १. गरम। २.बंदरों का समूह । ३. सूर्य ।
शेष
देव
सब
की गति