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....डाली में कमल तामें भौंरा प्राण हरे है। नासिका के हेतु भयो भोग में अचेत सारी, रैन के कलाप में विलाप इन करे है।।
ओह ! यह एक भ्रमर कमल में इतना रसासक्त कि रात्रि होने पर भी
इसे उड़ने की होश नहीं रही और कमल के मुद्रित होने पर यह उसमें ही बंद होकर अपने प्राण गँवा बैठा।
और ये भौंरा तो एक इन्द्रिय के आधीन था, पर मेरे पीछे तो पाँचों ही
इन्द्रिय विषयों के चोर लगे हुए हैं।