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इन दस मासों के वार्तालाप में पुत्रों की अत्यन्त दृढ़ता देखकर ग्यारहवें वैसाख मास में चक्रवर्ती को विश्वास हो गया कि 'अब बोलने को कुछ भी नहीं रहा है। तब उन्होंने कहा कि 'हे पुत्रों! संसार की रीति का पालन करके एक बार
हमसे तो राज्य संभालो फिर चाहे इसे किसी को भी दे देना।'
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