Book Title: Vajradant Chakravarti Barahmasa
Author(s): Nainsukh Yati, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Kundalata and Abha Jain

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Page 116
________________ अनित्य वज्रदंत चक्रेश की, कथा सुनी मन लाय। कर्म काट शिवपुर गये, बारह भावन भाय।। अशरण संसार लोक अन्यत्व आस्त्रव निर्जरा एकत्व 5 अशुचि संवर जो पढ़े बारह मास भावन, भाय चित्त हुलसाय के। | तिनके हों मंगल नित नये, अरु विघ्न जांय पलाय के।।। अंतिम दोहा नित-नित नव मंगल बढे, पढ़ें जो यह गुणमाल। सुर-नर के सुख भोगकर, पावै मोक्ष रसाल / / समाप्त (115)

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