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हे पिता ! आपने तो वन के निवास ही को सुख रूप से अंगीकार किया है वही आपकी समझ ही हमारी भी समझ है।
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तुमने तो वन के वास ही को, सुक्खा अंगीकृत किया । तुमरी समझ सोई समझ हमरी, हमें नृपपद क्यों दिया।।
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