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मारैं दुष्ट खेंच के तीर, फाटे उर थरहरे शरीर । थरहरे सगरी देह, अपने हाथ काढ़त नहीं बने। नहिं और काहु से कहे तब देह की थिरता हने।।
और दुष्टजन जब खेंचकर तीर मारते हैं तो हृदय फट जाता है तथा शरीर थरथराता है और उसकी सारी स्थिरता का हनन हो जाता है।
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