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कराया
विश्वास
युक्त
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SHRISHTION वैशाख-मास ग्यारहवाँ भाका
चौपाई मास बैसाख सुनत अरदास। चक्री मन उपज्यो विश्वास।
अब बोलन को नाहीं ठौर'। मैं कहूँ और पुत्र कहें और।। अर्थः- वैशाख का महिना है, पुत्रों की अरदास सुनते-सुनते चक्रवर्ती के मन ___ में विश्वास पैदा हो गया कि अब बोलने को कोई स्थान नहीं बचा है, मैं कुछ और कह रहा हूँ और पुत्र कुछ और ही कहे जा रहे हैं।
गीता छंद और अब कछु मैं कहूँ नहीं, रीति जग की कीजिये। इक बार हमसे राज लेकर, चाहे जिसको दीजिये। पोता था एक षट् मास का, अभिषेक कर राजा कियो। पितु संग सब जगजाल सेती, निकस वन मारग लियो।।
अर्थः- हे पुत्रों ! अब मैं कुछ और नहीं कहूँगा, इस संसार की रीति का पालन करके एक बार हमसे तो राज्य ले लो फिर चाहे तुम किसी को भी दे देना। फिर उन्होंने छह महिने का एक पोता था उसको अभिषेक करके राजा बना दिया और पिता के साथ सब पुत्रों ने जगत के जंजाल से निकलकर वन के मार्ग को ग्रहण किया।
चौपाई उठे वजदन्त चक्रेश। तीस सहस न प तजि अलवेश।
एक हजार पुत्र बड़भाग। साठ सहस्र सती जग त्याग।। अर्थः- वज्रदन्त चक्रवर्ती सिंहासन से उठे और उनके साथ अलवेश को छोड़कर तीस हजार राजा, उनके बड़भागी एक हजार पुत्र और साठ हजार रानियों ने भी जगत का त्याग कर दिया।
गीता छंद त्याग जग कू ये चले सब, भोग तज ममता हरी। समभाव कर तिहुँ लोक के, जीवों से यों विनती करी। अहो! जेते हैं सब जीव जग के, क्षमा हम पर कीजियो।
हम जैन दीक्षा लेत हैं, तुम वैर सब तज दीजियो।। अर्थ:- ममता का विनाश करके भोगों को त्याग कर ये सब संसार को छोड़कर चले और समता भाव को धारण करके तीनो लोकों के जीवों से इस प्रकार विनती की कि 'अहो संसार के समस्त जीवों ! तुम सब हम पर क्षमा करना, हम जैनेश्वरी दिगम्बर दीक्षा ग्रहण कर रहे हैं, तुम हमारे प्रति का सारा वैर छोड देना।
HIRAM
अर्थः- १. स्थान।