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XX वैशाख-मास ग्यारहवा
मारास
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गीता छंद , वैर सबसे हम तजा,
अहंत का शरणा लिया। श्री सिद्ध साधू की शरण,
सर्वज्ञ के मत चित दिया। यों भाष पिहितास्रव गुरुन ढिग',
जैन दीक्षा आदरी। कर लोंच तज के सोच' सबने,
ध्यान में द ढ़ता धरी।। अर्थः- हमने भी सबसे वैर छोड़कर अहँत, सिद्ध और साधु की शरण ली है और भगवान सर्वज्ञ के मत में अपना चित्त लगा लिया है। ऐसा कहकर उन्होंने पिहितास्रव गुरु के पास जैन दीक्षा ग्रहण की और केशों का लोंच करके समस्त चिंताओं को छोड़कर ध्यान में द ढ़ता धारण की।
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अर्थः- १.समीप। २.चिंता (विकल्प)।
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सब दीक्षार्थियों ने जगत के जीवों से वैर छोड़कर A A और
amanna क्षमा ग्रहण करवाके
अरहंत, सिद्ध और निर्ग्रन्थ साधुओं की शरण ग्रहण की।
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