Book Title: Vajradant Chakravarti Barahmasa
Author(s): Nainsukh Yati, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Kundalata and Abha Jain

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Page 23
________________ GORRIORS VEALE SARACOTMD * आसाढ़-मास पहला II चौपाई सुत असाढ़ आयो पावस काल। सिर पर गरजत यम विकराल। लेहु राज सुख करहु विनीत। हम वन जांय बड़न की रीति।। अर्थः- आसाढ़ के महिने में बरसात का समय आने पर ऐसे घनघोर बादल गरजते हैं मानों सिर पर विकराल यम ही गरज रहा हो अतः हे विनीत पुत्रों ! तुम तो इस राज्य को लेकर सुखपूर्वक रहो, हम वन को जाते हैं और बड़ों की ऐसी रीति ही है कि वे इसी प्रकार छोटों को राज्य संभलवाके दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। गीता छंद जांय तप के हेत वन को, भोग तज संजम धरैं। तज ग्रन्थ सब निर्ग्रन्थ हों,संसार सागर से तरैं। ये ही हमारे मन बसी, तुम रहो धीरज धार के। कुल आपने की रीति चालो, राजनीति विचार के।। अर्थः- हम तप के लिए वन को जा रहे हैं जहाँ भोगों का त्याग करके संयम को धारण करेंगे और अन्तरंग एवं बहिरंग समस्त परिग्रह को छोड़ निर्ग्रन्थ होकर संसार समुद्र से तिर जाएंगे। हमारे मन में तो यही बात बस गई है, तुम यहाँ पर धैर्य धारणE करके रहो और राजनीति का विचार करके राज्य-काज करो, यही हमारे कुल की। रीति है इसी का तुम अनुसरण करो। चौपाई का पिता राज तुम कीनो वौन'।ताहि ग्रहण हम समरथ हौं न। यह भौंरा भोगन की व्यथा । प्रकट करत कर कंगन यथा।। अर्थः- हे पिता ! आपने तो राज्य का वमन कर दिया है, उस वमन को ग्रहण करने में हम समर्थ न हो सकेंगे और फिर यह भौंरा भोगों की व्यथा को कर के कंगन के समान प्रकट कह तो रहा है। - गीता छंद यथा कर का कांगना, सन्मुख प्रकट नजरां परे। त्यों ही पिता भौंरा निरखि,भव भोग से मन थरहरे। तुमने तो वन के वास ही को,सुक्ख अंगीक त किया। तुमरी समझ सोई समझ हमरी,हमें न प पद क्यों दिया।। अर्थः- जिस प्रकार कर का कंगन नजरों के सामने स्पष्ट ही दिखाई देता है उसी प्रकार हे तात ! इस भौंरे को देखकर हमारा मन संसार और भोगों से थरथरा रहा है। आपने तो वन के निवास ही को सुख रूप से अंगीकार किया है सो आपकी समझ है सो ही हमारी भी समझ है, हमें आप राज्यपद क्यों दे रहे हैं! MARA अर्थ:- १. वमन। OHAAN

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