Book Title: Vajradant Chakravarti Barahmasa
Author(s): Nainsukh Yati, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Kundalata and Abha Jain

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Page 21
________________ सवैया बैठे वजदन्त आय आपनी सभा लगाय, ताके पास बैठे राय बत्तीस हजार हैं । इन्द्र के से भोग सार रानी छ्यानवे हजार, पुत्र एक सहस्र महान गुणागार' हैं । पुण्य प्रचण्ड से नये हैं बलवंत शत्रु, I हाथ जोड़ मान छोड़ सेवैं दरबार हैं। ऐसो काल पाय माली लायो एक डाली तामें, देखो अलि अम्बुज मरण भयकार हैं ।। अर्थः- वज्रदंत चक्रवर्ती राजदरबार में आकर अपनी सभा लगाकर विराजमान हैं, उनके पास ही बत्तीस हजार (मुकुटबद्ध) राजा बैठे हुए हैं। चक्रवर्ती के इन्द्र के समान सारभूत भोग हैं, छियानवे हजार रानियाँ है और गुणों के समूह एक हजार पुत्र हैं। उनके प्रचण्ड पुण्य से बलवान शत्रु भी उनके सामने झुक गए हैं और हाथ जोड़कर एवं मान छोड़कर वे उनके दरबार का सेवन कर रहे हैं ऐसा समय पाकर माली कमल की एक डाली लाता है और उसमें वे चक्रवर्ती मरण से भयभीत करने वाले एक भौंरे को देखते हैं । सवैया अहो ! यह भोग महा पाप को संयोग देखो, डाली में कमल तामें भौंरा प्राण हरे है । नासिका के हेतु भयो भोग में अचेत सारी, रैन के कलाप में विलाप इन करे है । हम तो हैं पाँचों ही के भोगी भये जोगी नांहि, विषय - कषायनि के जाल मांहि परे हैं। जो न अब हित करूँ जाने कौन गति परुँ, सुतन बुलाय के यों वच अनुसरे हैं ।। अर्थः- १. गुणों के समूह । २. झुके । ३. भौंरा । ४. कमल । ५. नाक (घ्राण इन्द्रिय) । ६. रात । ७. समूह । २०

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