Book Title: Vajradant Chakravarti Barahmasa
Author(s): Nainsukh Yati, Kundalata Jain, Abha Jain
Publisher: Kundalata and Abha Jain

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Page 20
________________ WMA BIGIBIBI w no EFF || SIBIOTI 080808 सवैया वन्दूं मैं जिनन्द परमानन्द के कंद, जगवन्द विमलेन्दु' जड़तातपहरन । इन्द्र धरणेन्द्र गौतमादिक गणेन्द्र जाहि, सेवें राव-रंक भव सागर तरन कू। निर्बन्ध निर्द्वन्द्व दीनबन्धु दयासिन्धु, करें उपदेश परमारथ करन कू। गावैं नैनसुरवदास वजदन्त बारहमास, मेटो भगवन्त मेरे जनम-मरन कू।। अर्थ:- जो परम आनन्द के पिण्ड हैं, जगत से वंदनीय हैं, जो जड़ता रूपी गर्मी को हरने के लिए निर्मल चन्द्रमा हैं, संसार समुद्र से तिरने के लिए इन्द्र, धरणेन्द्र, गौतमादि गणधर और राजा हो चाहे रंक सब ही जिनकी सेवा करते हैं, जो बंध रहित हैं, राग-द्वेष के द्वन्द्व रहित हैं, दीनजनों के बंधु हैं, दया के सिन्धु हैं और भव्यों को उनके मोक्ष रूपी उत्क ष्ट प्रयोजन की सिद्धि के लिए उपदेश करते हैं उन जिनेन्द्र की वन्दना करके नैनसुखदास जी वज्रदंत चक्रवर्ती का बारहमासा रच रहे हैं और प्रभु के चरणों में उनकी यही विनय है कि हे भगवान ! मेरे जन्म-मरण को मिटा दो। दोहा वज्रदन्त चक्रेश की, कथा सुनो मन लाय। कर्म काट शिवपुर गये, बारह भावन भाय अर्थः- हे भव्यों! जो बारह भावनाओं को भाकर, अपने कर्मों को काटकर मोक्ष गए उन वज्रदंत चक्रवर्ती की कथा तुम मन लगाकर सुनो। 樂泰泰泰拳拳拳拳拳拳拳泰拳拳拳拳拳拳拳拳拳拳拳拳 अर्थः- १.निर्मल चन्द्रमा। २.जड़ता (मिथ्यात्व) रूपी गर्मी। 000000000000000000000000000

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