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जशविलास
॥ ३ ॥ जव लीला वासित सुर डारे, तुंपर सबहीं जवारी ॥ में मेरो मन निश्चल कीनो, तुम थापा सिरधारी ॥ रुषज० ॥ ४ ॥ ऐसो साहिब नहिं कोउ जगमें, यासुं दोय दिलदारी || दिलहि दलाल प्रेमके बिचे, तिहां हव खेंचे गमारी ॥ रुषज० ॥ ५ ॥ तुंमहि साहिब में हुं बंदा, या मत देऊ विसारी ॥ श्रीनय बिजय विबुध सेवकके, तुमहों परम उपकारी ॥ रुषज० ॥ ६ ॥ ॥ पद त्रेवीशमं ॥
॥ राग वेलावल ॥ गौतम गणधर नमियें हो, अह निसि गौतम गणधर नमियें ॥ टेक ॥ नाम जपत नवही निधि पइएं, मन वंबित सुख लहिएं दो ॥ ० ॥ १ ॥ घर अंगन जो सुरतरु फलियो, कहा काज बन जमियें ॥ सरस सुरनि घृत जो हुवे घर में, तो क्यों तैले जमियें हो ॥ श्र० ॥ ॥ २ ॥ तेसी श्री गौतम गुरु सेवा, ओर वोर क्युं रमियें ॥ गौतम नामें जवजल तरिएं, कहा बहुत तनु दमियें ॥ श्र० ॥ ३ ॥ गुण अनंत गौतमके समरन, मिथ्यामति विष गमियें ॥ जस कड़े गौतम
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