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जशविलास
सिस तुज फरजंदरे ॥ जसविजय वाचक एम विनवे, टाल मुज जव फंद रे ॥ चंद्र० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ पद सित्तेरमुं ॥
॥ राग काफी ॥ तो बिना थोर न जाचुं जिनंदराय ॥ तो० ॥ टेक ॥ में मेरो मन निश्चय किनो, एहमां कतु नहिं काचुं ॥ जिनंदराय ॥ तो ० ॥ १ ॥ तम चरन कमलपर पंकज मन मेरो अनुभव रस जर चाखुं ॥ अंतरंग अमृत रस चाखो, एह वचन मन साधुं ॥ जी० ॥ तो० ॥ २ ॥ जस प्रभु ध्यायो महारस पायो, अवर रसें नहिं राचुं ॥ अंतरंग फ रस्यो दरसन तेरो, तुज गुण रस रंग माचुं ॥ जी० ॥ तो० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद इकोतेरमुं ॥
॥ राग प्रजाती ॥ दृष्टि रागें नवि लागियें, वली जागियें चित्तें ॥ मागियें शिख ज्ञानी तणी, हठ जांगीएं नित्यें ॥ दृष्टि० ॥ १ ॥ जे बता दोष देखे नहिं, जिहां जिहां यति रागी ॥ दोष बता प दाखवे, जिहांथी रुचि जांगी ॥ दृ० ॥ २ ॥ दृष्टि राग चले चित्तथी, फरे नेत्र विकरालें || पूर्व उप
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