Book Title: Vairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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संयम तरंग
१५१ हु मसे जग जनने, नगरें अपजस गावे ॥ सन्मुख विष्टाय पाहन नाखे, पोतें अशुचि नरावे ॥१०॥ ॥४॥ पखपाती श्रुति निति विलोपी, चामना दामना चलावे ॥ तेहथी निधि संयम ज्ञानानंद, सुधारस अनुजव पावे ॥ १० ॥५॥ इति ॥
॥पद उंगणत्रीशमुं॥ ॥ राग कल्यान ॥ऐसी तुं कली उमाइ, संतो ॥ ऐ० ॥ टेक ॥ ममता सूतरमो लेकर, तृष्णा मांऊ लगा ॥सं ॥१॥ कुतूहल रंग विरंग तुकली, मूळ तीली सुहाइ ॥ विविध माया धनुष जाके, लटकन मिथ्या लहा॥ सं०॥५॥ कुटिल प्रवृत्ति पवन वरतें, गगनें शेष वधा॥ जोक लेकर मोर लीनी, नयन विषय वर धा॥सं॥३॥ कापत कापत श्राप वध गये, परजावें हरखा ॥ तिनतें ज्ञानानंद नवनिधि, बैसेही संयम ना ॥ सं० ॥४॥इति ॥
॥पद त्रीशमुं॥ ॥ राग कल्यान ॥ ऐसा पतंग चढाइ, संतो ॥ 'ऐ ॥ टेक ॥ध्यान पतंग वर ज्ञान चित्रित, संयम मोरी लगा॥ सं०॥१॥ मेरुदंम पदमासन धर
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