Book Title: Vairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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१५०.
संयम तरंग
कृपाण शरधारो ॥ कूतरा कूतरी दासी इनकर, वर्जरें नूधर पामो ॥ सं० ॥ १ ॥ विषहर अमृतपान संयोगें, निर्विष जाव वधारो ॥ सदागम संयम धर नृप याना, निखिलपुरें वरतारो ॥ सं० ॥ २ ॥ जबलग ती - नो हरुक न मारे, दरशन नाप न पावो ॥ तेढ़ विना संयम पिण नांहिं, साध्य सिद्धि किम जावो ॥ सं० ॥ ३ ॥ साधक सुन साधन नवि पामें, तेहथी दमक निवारो ॥ निधि सयंम ज्ञानानंद अनुजव परमानंद सुख धारो ॥ सं० ॥ ४ ॥ ॥ पद
हावी शभुं ॥
॥ राग बिहाग ॥ इमक सान संग नावो ॥ श्रबधू ॥ इ० ॥ टेक ॥ जिम जिम निर्मल घनाघन वरसे, महि नवपल्लव रावों, तिम तिम इमकिय वायु विकारें, अनिस हरुक सरावो ॥ ० ॥ १ ॥ काली कुतरी पण बे तेहवी, सरिखो जोग मिलायो ॥ निजमति जोगें गिरिवर चढियो, जाति संगति टल्लां - यो ॥ ० ॥ २ ॥ नृपबिन नृपनिति ते चलावे, जग जन मान न माने ॥ तेढ्ने गुरु जन हित बतलावे,' तोपिन खान न जाने ॥ ०॥ ३ ॥ इरुक हरुक बं
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