Book Title: Vairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 161
________________ अष्टपदी १५७ ॥अथ॥ ॥श्रीजशोविजयजी कृत आनंदघनजीनी स्तुतिरूप अष्टपदी प्रारंजः ॥ ॥पद पदेखें ॥ ॥ राग कनडो ॥ मारग चलत चलत गात, श्रानंदघन प्यारे ॥ रहत श्रानंदनर पूर ॥ मा० ॥ ताको सरूप नूप, त्रिहु लोकथें न्यारो ॥ बरखत मुख पर नर ॥ मा॥१॥ सुमति सखीके संग, नित नित दोरत ॥ कबहु न होतही दूर॥जशविजय कहे सुनो हो आनंदघन, हम तुम मिले हजूर ॥मा॥२॥ ॥पद बीजं॥ ॥ आनंद घनको थानंद, सुजशही गावत ॥ रहत आनंद सुमता संग ॥ आनंद ॥ सुमति सखी श्रोरनवल थानंदघन, मिल रहे गंग तरंग॥आनं०॥ ॥१॥ मन मंजन करके निर्मल कीयो हे चित्त, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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