Book Title: Vairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 132
________________ १२ज झान विलास मसनेही रामकी प्यारी, यतिगण यतिनी ना॥॥ ॥अपने अपने मत पख गदेला, सहु उन्या बहुरा॥ पि०॥ पण ना जाणुं कोण हे साचो, अपनी तो जरमा ॥ पि ॥३॥ दिव्य विचारें निज अनुजवतां, जग पाखंग दिखा ॥ पि० ॥ निधिचारित एक ज्ञानानंदनो, विमल वचन सतला ॥ पि०॥४॥ ॥पद सडशठमुं॥ ॥राग रामग्री ॥ वालम वचन सुहाइ ॥ पिया श्रम वा० ॥ पक्षपात नहि दिव्य विचारें, निज अनुनव दिखला॥पि॥१॥इंघिय सुख विरमण यति कहिये, दश यति धर्म धरा॥ पि ॥ जव उद..विगन संवेगी कहिये, योग चरण जे योगी.॥ पि० ॥ चारित्र नाव सन्यासी जानी, बरामन बरम गुण जोगी ॥ पि ॥२॥ साहिब रमण ते रामका प्यारा, एक रूप सहु जाय ॥ पि० ॥ निधि चारित्र ज्ञानानंद अनुभव, ध्यान समाधि सुहा॥पि॥४॥ ॥पद अडशमुं॥ ॥राग रामग्री ॥ नारी प्रेम निवारो, साधो जाकुटिला नारि निवारो ॥ सा॥ टेक ॥ कुटिला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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