Book Title: Vairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 150
________________ २४६ संयम तरंग ग्या ॥२॥ अष्टादस विध जोजन जिमो, तिरिखे. णी जल न्हा ॥ पत्रिम पावड साला मारग, बार उघाडो सां॥ ग्या॥३॥ विविध वाजिन धनि सांजल निरखे, मुगताफल तरुसां ॥तव निधि चारित्र ज्ञानानंदें, नाचे हरख जराश ॥ ग्या० ॥ ॥ इति ॥ ॥पद एकवीशमुं॥ ॥राग तिवाना ॥ जोगीयासें यारी कीनी हो, झान दिनंदा ॥ जो० ॥ टेक ॥ ज्ञान दिनंदा त्रिजुवन चंदा, तटनी तटनि वसंदा, बरम नाव कबोट धरंदा, घात। जसम विपदा ॥जो० ॥१॥साद सांत दृढ श्रासनधारी, सुं निज परिणति नायी॥ झेय मसाला प्रेमका प्याला, योग नींद लय लायी। जो॥२॥ तत्त्व विचार जटा वधारी, अनहद धुनि चित्त लाइ ॥ निधिचारित्र सुन सेजें प्यारी, झानानंद मचका ॥जो ॥३॥इति ॥ ॥पद बावीशमुं॥ ॥राग तिवाना ॥ गगनें घन निरखानी हो, हरख लदानी ॥ ग ॥ टेक ॥ तिहां शुचि ग अमिसर निरखानी, परमानंद निसानी ॥ तट मुगताफ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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