Book Title: Vairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 149
________________ १४५ संयम तरंग राज सुधास्यो ॥गु०॥ तव निधिचारित्र कमला संगें, खहै निर्मल ज्ञानानंद रंगें ॥ गु० ॥५॥ इति ॥ ॥पद उंगणीशमुं॥ ॥राग जंगला ॥ ज्ञान विचारो रे जा, गुरुगम शैली श्रादर संतो ॥झा॥ टेक ॥ गगनमंडल ग. त विविध तूर धनी, घोर स्वरेकर वाजै ॥ पाथोरण बिन घनाधन वरसे, गिरीषम ताप समाजै॥हा॥ ॥१॥ यामें रहत बतासा कोरा, वजर गलै गताने ॥ वासर विन अरुण प्रन नासै, तेजें ऊलहल जाने ॥ झा ॥२॥ मानस नहिं जिम मानस मेला, निरखत लहै श्रानंदें ॥ निधिचारित ज्ञानानंद प्रेमें, रमण करे सुखकंदें ॥ झा ॥३॥ इति ॥ ॥पद वीशमुं॥ . ॥राग जंगलो ॥ ग्यान बिचारो सांई, ऊटपट अनुन्नव प्रीत लगासी ॥ग्या॥ टेक ॥ जीर्ण कुटीयें चेपागल, कां लग वास रहासी ॥ धनाधन वरसत तटनी पूरें, आपोआप वहासी ॥ग्या॥१॥ तातें अवधू चारने वरजी, निज सासू बतलावो ॥ चार पांच सखि वरगें हिलमिल, मोकुं हिरदय जावो ॥ १० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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