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समय तरंग
१४१ नूखन ले सश्यां ॥ ज्ञान गुलाल अबीर उमाश, कुमकुम शांति नरे सश्यां ॥ हो॥१॥ संयम रंग सुरंग जरीने, पिचकारी श्रागम ले सश्यां ॥ समता साथें सुमति गुप्ति सखी, होरी खेले ताथश्यां ॥ हो॥ ॥२॥ शुज समकित पकवाननुं जोजन, चेतन हरख धरे सश्यां ॥ निधि चारितयुत ज्ञानानंदें, निजगुन होरी वरे सश्यां ॥ हो ॥३॥ इति ॥
॥ पद तेरमुं॥ ॥ राग तुमरी ॥ पर विकथा तुं कहा करतहे, अपनी न काह विचारतहे रे ॥ पण ॥ टेक ॥ जगमें पर विकथा कर संतो, ज्ञान ध्यान विगमावतहै रे॥ प० ॥ १॥अपनी विकथा काह न धारे, पोतें पुरित जरावतहै रे ॥ गर्दा संयम दिव्य विचारे, अंतरजाव दिखावतेहै रे ॥ ५० ॥२॥ जबलग अपनी कथनी न जाने, कहा उपदेश सुनावतहै रे ॥ निधि चारित्र ज्ञानानंद निजपद,काह न चि. त्त रमावतहै रे ॥ प० ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ पद चौदमुं॥ ॥ राग तुमरी ॥ गगन प्रदेश रसाल काम ग,
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