Book Title: Vairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
१३०
संयम तरंग विजाव हे सबही, अपनो न बांड हे कबही॥ सा ॥१॥ को प्रकारे नहिं देखो, उषर बीजको लेखो॥ रासन गंगाजल धोयो, तोपण लोटे उकडायो ॥ सा ॥२॥ सूकर पायसकुं बंमी, श्रशचिनोगे जे मंमी ॥ मध घतकर सींचो तबहीं, नींब न मीगे होय कबहीं ॥ सा ॥३॥ ज्ञानी ध्यानी के वेषी, निजमत पखपातें पेखी ॥ तिनतें अनुभव ज्ञानानंदें,सुनजो चारित्रश्रानंदें॥सा॥४॥
॥पद आठमुं॥ ॥राग काफी ॥ देखो प्यारे सब जग कलही, नहिं को शांति मूरत पेही ॥देण्॥ मुनिजन उपसम गुण धारी, कलही कोप कारण सारी ॥ दे ॥१॥ सेकुं तसकर सहु गावे, तसकर सेठ करी लावे ॥ सतवादीकुं कहे कूमा, मिरखाकुं सत कहे-मूंमा ॥ दे ॥२॥ कमल प्रन सूरी जानो, श्रुति दृष्टांत कहे मानो॥तिनतें निधि चारित धारी, नजो झानानंद अधिकारी ॥ दे ॥३॥ इति ॥
॥पद नवमुं॥ ॥ राग काफी॥सब जग जन अपनी ताने, जिहां
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/122c0837d73ae88648db8511e26f6155ffc03bd5461ab4bd7f99da6634d0bea2.jpg)
Page Navigation
1 ... 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164