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विनय विलास ॥ पद चोत्रीशसुं ॥
॥ बावा हम विचार करलागे, हम बिचार करलागे ॥ बा० ॥ टेक ॥ मनमें चिंता रहि न कोउ, दुःखनरम जोजागे ॥ बा० ॥ १ ॥ गुरुका शब्द तीर तरकसमें, करे कमान बिचारी ॥ साचे सो रन स मसेर हमारे, तो ग्यान घोडे असवारी ॥ बा० ॥ ॥ २ ॥ गोरव काज वसीला कीया, चेहेरे नाम लिखाया | सत्य काज संतोष लगामी, तेजीका चाबक लाया ॥ बा० ॥ ३ ॥ प्रेम प्रीत बिच जाम न दीना, तुरत बरात लखाइ ॥ नाम खजाना जगत अलुफा, तो खुब चाकरी पाइ ॥ बा० ॥ ४ ॥ हांसल दाम खरच कतु नांहीं, तागीर करे न कोइ ॥ विनयकुं दरसन उमदी खिजमत, जाग्य विना न हाइ ॥ बा० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ पद पांत्रीशमं ॥
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॥ यदि यदि जिन ध्यायो, चरणारविंद उदायो | चल उदयो प्रभु मुख सूर ॥ ० ॥ टेक ॥ सोम सुक्तित जयो, त्रिहुं लोक आनंद लह्यो ॥ प्रभु मुख देखत चंद्र शीतल जरपूर ॥ श्र० ॥ १ ॥ घर
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