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विनय विलास
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घर मंगल बायो, बुद्धि विवेक आयो ॥ गुरुके चरण धायो, सुकर समकित पायो ॥ श्र० ॥ शनी केतु राहु चलायो, विनय पद तिहां पायो ॥ नवनिधान शुज शिव वधू पहोचायो ॥ श्र० ॥ २ ॥ इति ॥ ॥ पद बत्रीशमं ॥
॥ परम पुरुष तुंहि, कल मूरति युंही, अकल अगोचर नूप, बरन्यो न जात हे ॥ परम || १ ॥ टेक ॥ तिन जगत नूप, परम वलजरूप, एक अनेक तुंही, गिन्यो न गिनात हे ॥ परम० ॥ २ ॥ अंग अनंग नांहिं, त्रिभुवनको तुं सांई, सब जीवनको सुखदाइ, सुखमें सोहात दे ॥ परम० ॥ ३ ॥ सुख अनंत तेरो, ग्रह्यो न यावे घेरो, इंद्र इंद्रादिक हेरो, तोहुं न हिं पात हे ॥ परम० ॥ ४ ॥ तुंही अविनाशी कहायो, लखेमें न कानहीं थायो ॥ विनय करी जो चायो, ताकुं प्रभु पायो हे ॥ परम० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ पद साडीशमं ॥
॥ राग आशावरी ॥ माया महा ठगणी में जानी ॥ माया० ॥ टेक ॥ त्रिगुन फांसा लेईकर दोरत, बोलत अमृतबानी ॥ माया० ॥ १ ॥ केसव घर कमला
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