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ज्ञानविलास इनकी श्रादि किहां कुण जाणे, आगम दिव्य विचार प्रमाणो ॥ चारित ज्ञानानंदें अनुजव, ए सहु नाव अनादि बखानो ॥ कै० ॥ ४ ॥इति ॥
॥पद सत्तावीशमुं॥ ॥ राग श्राशावरी ॥श्रदजूत एक अचंलो देखो, अबतक जानुं नहिं को लेखो॥१०॥टेक॥ जंगलमांहे मोटो चरखो, कवन बनायो चालत पेखो॥ १० ॥१॥ बोटीसी कीमी तेहनें कांते, पाठ पहर श्रद निसि मन जायो । चालत चालत थाकत नांहिं, इतनो बल यामें किहांसें श्रायो॥०॥२॥ रूबडी तेहनी नहि कहिं दीसे,का जाने कहां राखी नायो ॥ सघलाइ जनने चरखो दीसे,पागल पागल रू न दिखायो॥१०॥३॥कीडी थाकतां चरखो न चाले, केसोनयो हरामी देखो॥ तिनतें चारित झानानंद जे,श्रापमतें रहे तम ते पेखो॥१०॥४॥ति॥
॥पद अहावीशमुं॥ ॥राग श्राशावरी ॥ श्रदनूत एक अचंलो नारी, निरख समज थापोश्राप विचारी ॥१०॥टेक ॥ पारावाररहित सागर बिच, नाव एक जिहां
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