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जशविलास सुराग ॥ टेक ॥ दिनदिन वान चढे गुन तेरो, ज्यु कंचन परजाग ॥ ओरनमें हे कषायकी कलिका, सो क्यु सेवा लाग ॥ में कीनो॥१॥राजहंस तुं मानसरोवर , ओर अशुचि रुचि काग ॥ विषय जुजंगम गरुम तुं कहियें, ओर विषय विषनाग ॥ में कीनो ॥२॥ओर देव जल बीलर सरिखे, तुं तो समुज अथाग ॥ तुं सुरतरु जग वंबित पूरन, ओर तो सुको साग ॥ में कीनो० ॥३॥ तु पुरुषोत्तम तहि निरंजन, तुं शंकर वडनाग ॥ तूं ब्रह्मा तुंबकि महाबल, तुंदि देव वीतराग ॥ में कीनो ॥४॥ सुविधिनाथ तुज गुन फूलनको, मेरो दिल हे बाग॥ जस कहे जमर रसिक होइ तामें, लीजें नक्ति पराग ॥ में कीनो ॥५॥
पद एकावनमुं॥ ॥राग फागनी देशी॥चन कसाय पाताल कल श जिहां, तृष्णा पवन प्रचंग ॥ बहु विकल्प कबोल चढतुहे, श्रारति फेन उदंड ॥ १ ॥ जवसायर जीषण तारीएं हो, अहो मेरे ललना ॥ पासजी त्रिजुवन नाथ दिलमें,ए विनति धारियें हो॥१०॥
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