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जशविलास चतुर टली ॥ स०॥४॥ अब में ऐसो सऊन पायो, उनकी रीत जली ॥ श्रीनय विजय सुगुरु सेवातें, सुख रस रंग रली ॥ स० ॥५॥ इति ॥
॥पद चोपनमुं॥ आज श्रानंद जयो, प्रजुको दर्शन सह्यो, रोम रोम सितल लयो, प्रजु चित्त आयो हे॥श्रा॥मन ढुंते धास्या तोहे, चलके आयो मन मोहे, चरण कमल तेरो, मनमें ठहरायो हे॥श्रा ॥१॥श्रकल अरूपी तुंही, श्रकल अमूरति योही, निरख निरख तेरो, सुमतिशुं मिलायो ॥श्रा॥॥ सुमति खरूप तेरो, रंग नयो एक अनेरो, वारंग श्रास्म प्रदेशे, सुजस रंगायो हे ॥ श्रा० ॥३॥इति ॥
॥पद पंचावनमुं॥ ॥ ज्ञानादिक गुण तेरो, अनंत अपर अनेरो॥ वाही कीरत सुन मेरो, चित्तहुँ जस गायो हे ॥ झान० ॥१॥ तेरो ग्यान तेरो ध्यान, तेरो नाम मेरो प्रान, कारण कारज सिको, ध्याताध्येय ठहरायो हे ॥ ज्ञा० ॥२॥ बूट गयो भ्रम मेरो, दर्शन पायो में बेरो॥चरण कमल तेरो, सुजस रंगायो हे॥ज्ञा॥३॥
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