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जशविलास गन रहेरे, रागादिक मल खोय ॥ चित्त उदास करनी करेरे, कर्मबंध नहिं होय ॥॥३॥ लीन जयो व्यवहारमें रे, युक्ति न उपजे कोय ॥दीन नयो प्रजु पद जपेरे, मुगति कहांसुं होय ॥ चे० ॥४॥प्रनु समरो पूजो पढोरे, करो वीविध व्यवहार ॥ मोद खरूपी श्रातमारे, ग्यान गमन निरधार ॥चे ॥ ॥५॥ ज्ञान कला घट घट वसेरे, जोग जुगतिके पार ॥ निज निज कला उद्योत करेरे, मुगति होय संसार ॥ चे ॥६॥ बहु विध क्रिया कलेसशुं रे, शिव पद न लहे कोय ॥ग्यान कला परगाससों रे,स. हज मोद पद होय ॥ चे ॥ ७॥अनुजव चिंतामणि रतनरे, जाके हश्ए परकास ॥ सो पुनीत शिव पद लहेरे, दहे चतुर्गतिवास ॥ चे॥७॥ महिमा सम्यक् ग्यानकीरे, अरुचि राग बल जोय ॥ क्रिया करत फल जुजतेरे, कर्म बंध नहिं होय ॥चे॥ए॥ नेद ग्यान तबलों जलोरे, जबलों मुक्ति न होय ॥ परम जोति परगट जिहारे, तिहां विकल्प नहिं को. य ॥ चे ॥ १० ॥ नेद ग्यान साबू जयोरे, समरस निर्मल नीर ॥ धोबी अंतर आतमारे, धोवे निज गुण चीर ॥ चे० ॥ ११ ॥ राग विरोध विमोह मलीरे, ए.
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