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उस समय आश्रम का विकास-विस्तार होता गया और शासन प्रभावना भी बहुत हुई। संवत् 2027 कार्तिक शुक्ला द्वितीया दि. 02.11.1970 के दिन उनका देहविलय हुआ। निर्वाण प्राप्त किया
और वे महाविदेहगामी बने। भक्तों को उनका विरह सहन करना पड़ा, परन्तु प.पू. आत्मज्ञानी जगतमाताजी श्री धनदेवी की आश्रम में उपस्थिति होने से विरहाग्नि में भक्तगण को राहत मिली थी। प.पू. माताजी की पावन निश्रा में आश्रम का बहुत विकास हुआ और भक्ति का प्रवाह निरंतर वर्धमान होता रहा। भक्ति की शक्ति के द्वारा
और उसका महत्व समझाते हुए वे कृपालुदेव के भक्तों को भक्ति में तन्मय बनाकर अध्यात्म की पगडंडियाँ चढ़ाते हुए आत्मा की पहचान की ओर ले गए। प.पू. माताजी ने भी संवत् 2049 चैत्र शुक्ला 1 के दिन भरत क्षेत्र से विदा लेकर देहत्याग कर महाविदेह क्षेत्र प्रति प्रस्थान किया।
दो-दो ज्ञानियों ने इस क्षेत्र में विचरण किया इसलिए यह भूमि तीर्थभूमि बनी है, इसमें कोई भी संदेह नहीं है। इस भूमि का स्पर्श करते ही भव्यजीवों को परम शान्ति का अनुभव होता है। आश्रम के सारे ही कार्यक्रम ज्ञानियों द्वारा दर्शित मार्ग पर पूर्ववत् नियमित चलते हैं। अनेक भक्त नियमित भक्ति का लाभ प्राप्त करते हैं। कृपालुदेव के भक्त एवं अन्य भविजीव इस तीर्थभूमि की स्पर्शना बार-बार करते रहते हैं।
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