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‘आश्रम का भवन निर्माण और व्यवस्था
रत्नकूट पर गमनागमन हेतु 2.5 फलांग व्यवस्थित पैदल मार्ग, दो बड़ी गुफाएँ और आठ छोटी गुफाएँ हैं। एक बड़ी गुफा में चैत्यालय है। जहाँ श्री चन्द्रप्रभस्वामी की पाषाण प्रतिमाजी एवं श्री पार्श्वनाथजी की धातु की प्रतिमाजी विराजमान हैं। पूजा-विधि नित्य नियमित होती है। परम कृपालुदेव की 31 इंच की सुरम्य पाषाण प्रतिमाजी, चरण चिह्न एवं उनके चित्रपट स्थापित हैं, जिनके सन्मुख दो बार सत्संग भक्ति नियमित सम्पन्न होते हैं। इस गुफा मन्दिर की अंतर्गुफा में यह देहधारी आराधना करता है।
आश्रम में व्यवस्थित भोजनालय है, जिसमें सत्संग हेतु आनेवाले मुमुक्षुओं को दोनों समय नि:शुल्क भोजन दिया जाता है। बहनों
और भाइयों के लिए ठहरने के अलग-अलग आवास हैं तथा कुछ भाविकों द्वारा अपने खर्च से बाँधे हुए निवास स्थान भी हैं। फिर, एक विशाल जिनालय युक्त सत्संग भवन तथा पन्द्रह से बीस मकान निर्मित करवाने वाले भाविक तैयार हैं। परन्तु स्वयं देखभाल की उन्हें फुर्सत नहीं है जिससे यह संस्था ऐसे किसी सुयोग्य व्यक्ति की प्रतीक्षा में है कि जो तथा प्रकार की सेवा दे सके।
संस्था का हिसाब प्रत्येक कार्तिक पूर्णिमा के दिन परीक्षणपूर्वक सभा में प्रस्तुत किया जाता है। इस संस्था के माध्यम से अब तक अनेक नए-नए भाविक श्रीमद् परमकृपालु देव द्वारा दर्शित मार्ग के
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