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महाविदेह में वे महाविदेही, मानवदेह धारण करने के पश्चात् पूर्व संस्कार बल से बाल्यावस्था में द्रव्य-भाव निग्रंथ बनकर प्रभु कृपा से सातिशय अप्रमत्तधारा की साधना को विकसित करने में जुट गए। थोड़े ही वर्षों के पश्चात् उसे पार करके अपूर्व करण से क्षपक श्रेणिक पर आरोहणपूर्वक घाती कर्ममल का सर्वथा क्षय करके एवंभूत नय से अरिहंतपद पर आरुढ़ होकर श्री सीमंधर प्रभु की केवली पर्षदा में वे परमकृपालु वर्तमान में विराजमान हैं। इस आत्मा को उस परमकृपालु की असीम कृपा का बहुत बार अनुभव होता है। अधिक क्या लिखू ? इसीलिए साक्षात् परमात्मा के रूप में यह देहधारी उनकी उपासना कर और करवा रहा है।
शंका : आपको यदि महाविदेह और श्री सीमंधर तीर्थंकर देव के समवसरण की प्रतीति है, तो तीर्थंकर देवों की शाश्वत क्रम से चल रही आराधना पद्धति को छोड़ कर एक सामान्य केवली की आराधना का प्रचार क्यों करते हैं ? क्या, यह तीर्थंकरों की महान आशातना नहीं है ?
समाधान : जैसे महाविदेह के ईश्वर नामक तीर्थंकर देव के प्रत्युत्तर से प्रेरित होकर दो चारणलब्धिधारी मुनि आकाशगमन द्वारा भारत के तत्कालीन कूर्मापुत्र केवली, जो केवलज्ञानी होते हुए भी माता-पिता के अनुग्रह हेतु घर में रहे थे, उनके समीप आए तब उन्हें देखकर केवली भगवंत ने प्रथम देशना प्रकाशित की। वह सुनते
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