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क्षायिक सम्यक्त्व वत् भाव साधु पद तक उस पद की व्याप्ति है। अपने-अपने समय में जिसकी तारक पुण्यदशा अद्वितीय हो वह युगप्रधान माना जाता है। जैसे कि केवलियों में प्रथम युगप्रधान आर्य सुधर्मास्वामी माने गए और साधुओं में 'दुप्पसहो जा साहु' दुप्पसह साधु अंतिम युगप्रधान बताए जाते हैं वैसे ही अपवाद से श्रीमद् राजचन्द्रजी भी युगप्रधान थे, ऐसा ज्ञानियों की कृपा से जाना
है।
ॐ आनन्द आनन्द आनन्द
सहजानंदघन सादर जयसदुगुरु वंदन सह
सहजात्म स्मरण।
श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, हम्पी प्रकाशित योगीन्द्र युगप्रधान श्री सहजानंदघनजी
लिखित - सम्पादित साहित्य * उपास्यपदे उपादेयता * पत्र सुधा * सहजानंद सुधा * सहजानंद विलास * सहजानंदघन पत्रावली * अनुभूति की आवाज़ * आनन्दघन चौबीसी सार्थ टीका-सतरह स्तवन * सद्गुरु महिमा * पत्र सरिता।
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