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शुक्ला त्रयोदशी 1952 ॐ श्री महावीर (निजी)।' - पत्रांक 680 (महावीर जयंती)
'अति त्वरा से प्रवास पूर्ण करना था, वहाँ बीच में ही सहारा का मरुस्थल सम्प्राप्त हुआ। सर पर बहुत बोझ रहा था उसे आत्मवीर्य के द्वारा अल्पकाल में जिस प्रकार वेदन किया जाए उस प्रकार आयोजन व्यवस्था (प्रघटना) करते हुए पैरों ने निकाचित उदयमान थकान
ग्रहण की।'
'जो स्वरूप है वह अन्यथा होता नहीं, यही अद्भुत आश्चर्य है। अव्याबाध स्थिरता है। शरीर-प्रकृति उदयानुसार मुख्य रूप से कुछ अशाता का वेदन कर शाता की ओर उन्मुख है। ॐ शांति;' - पत्रांक 951
'यथा हेतु जो चित्त का, सत्य धर्म का उद्धार रे, होगा अवश्य इस देह से, हुआ ऐसा निर्धार रे,' ... धन्य रे दिन यह अहो 'आई अपूर्व वृत्ति अहो ! होगा अप्रमत्त योग रे, निकट केवल प्राय: भूमिका, स्पर्श कर देह वियोग रे, धन्य अवश्य कर्म का भोग है, भुगतना अवशेष रे, उससे, देह एक ही धार कर जाएँगे स्वरूप-स्वदेश रे, धन्य' हस्त नोंध (हाथ नोंध) 1-पृ. 64
उपर्युक्त उद्धरणों से यह सिद्ध हुआ कि श्रीमद् राजचन्द्रजी को 1947 में निश्चय नय से शुद्ध समकित प्रकाशित हुआ था। उसकी
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