Book Title: Upasya Pade Upadeyta
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 39
________________ ता आत्मीय माने जानेवाले स्त्री आदि पदार्थों के प्रति रहती है........ सर्व प्रकार की वर्तना निष्कपट रूप से उदय की है। सम विषमता नहीं-सहजानंद स्थिति है।' - पत्रांक 469 ___ 'आत्मा सर्व से अत्यंत प्रत्यक्ष है ऐसा परम पुरुष ने किया हुआ निश्चय वह भी (हमें) अत्यंत प्रत्यक्ष है।' - पत्रांक 579 ___ ‘एक आत्मपरिणाम के सिवा अन्य सर्व परिणामों के विषय में उदासीनता रहती है; और जो कुछ किया जाता है वह अपेक्षित भान के सौवें अंश से भी नहीं होता।' - पत्रांक 583 'मन:पर्यव ज्ञान को भी पर्यायार्थिक ज्ञान समझकर उसे विशेष ऐसे ज्ञानोपयोग में गिना है; उसका सामान्य ग्रहण रूप विषय भासित नहीं होने से दर्शनोपयोग में गिना नहीं है ऐसा सोमवार मध्याह्न को कहा था, तदनुसार जैन दर्शन का अभिप्राय आज (प्रत्यक्ष) देखा है। श्रावण शुक्ला 10, बुध 1951' - पत्रांक 625 ___ 'मोक्ष के सिवा जिसकी किसी भी वस्तु की इच्छा अथवा स्पृहा नहीं थी और मोक्ष की इच्छा भी अखण्ड स्वरूप में रमणता होने से निवृत्त हो गई है, उसे हे नाथ ! तू तुष्टमान होकर भी अन्य क्या देने वाला था ?' 'हे कृपालु ! तेरे अभेद स्वरूप में ही मेरा निवास है वहाँ अब तो लेने-देने की भी झंझट से मुक्त हुए हैं और वही हमारा परमानंद है।' 'कल्याण के मार्ग को और परमार्थ स्वरूप को यथार्थ रूप से नहीं समझनेवाले अज्ञानी जीव अपनी मतिकल्पना से मोक्षमार्ग की कल्पना 29

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