Book Title: Upasya Pade Upadeyta
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 48
________________ रूप बन जाती है... पंच परमेष्ठी मंत्र में ' णमो अरिहंताणं' पद के पश्चात् सिद्ध भगवान को नमस्कार किया है, यह बात ही भक्ति के लिए ऐसा सूचित करती है कि प्रथम ज्ञानीपुरुष की भक्ति और यही परमात्मा की प्राप्ति और भक्ति का निदान है।' - पत्रांक 223 'सजीवन मूर्ति के लक्ष के बिना जो कुछ भी किया जाता है वह सब जीव के लिए बंधन है - यह हमारा हृदयगत भाव है।' - पत्रांक 198 'हे पुराण पुरुष ! हम तुझमें और सत्पुरुष में कोई भेद ही समझते नहीं हैं, तेरी अपेक्षा हमें तो सत्पुरुष ही विशेष प्रतीत होते हैं, क्योंकि तू भी उनके आधीन ही रहा है, और सत्पुरुष को बिना पहचाने हम तुझे नहीं पहचान सके, यही तेरी दुर्घटता हमारे भीतर सत्पुरुष प्रति प्रेम उत्पन्न करती है । ' - पत्रांक 213 'पूर्व काल में हो गए अनंतज्ञानी यद्यपि महाज्ञानी हो गए हैं, परन्तु उससे कुछ जीव का दोष जाता नहीं, अर्थात् जीव में अभी मान हो तो पूर्वकाल में हो गए ज्ञानी कहने नहीं आते, परन्तु अभी इस समय जो प्रत्यक्ष ज्ञानी विराजमान हों वे ही दोष को बतलाकर दूर कर सकते हैं। जिस प्रकार दूर के क्षीर समुद्र से यहाँ के तृषापुर की तृषा तृप्त नहीं होती, परन्तु मीठे पानी का एक लोटा (भी) यहाँ हो तो उससे तृषा शांत होती है । ' - पत्रांक 466 'किसी प्रत्यक्ष कारण का आधार लेकर, चिंतन कर, परोक्ष चले आते हुए सर्वज्ञ पुरुष को केवल सम्यगदृष्टि से भी पहचाना जाए तो 38

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