Book Title: Upasya Pade Upadeyta
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 45
________________ दुप्पसह साधु पर्यंत युगप्रधानों की 2004 संख्या बतलाई है, जो पाँचवें आरे के अंत पर्यंत का क्रम है। उपर्युक्त आगम प्रमाण से इस क्षेत्र में पाँचवें आरे के अंत पर्यंत कोई विरल जीव पूर्व संस्कारबल से क्षायिक समकित प्राप्त कर सकते हैं यह निर्विवाद सत्य है। इस तथ्य को अनुभव प्रमाण से श्रीमद् ने सिद्ध कर दिया है। किसी को मानना, नहीं मानना यह उनकी मर्जी की बात है। शंका : कदापि श्रीमद् को क्षायिक सम्यक्त्व हुआ हो तो भले हुआ, परन्तु इससे वे कोई परमात्मा नहीं बन जाते हैं, फिर भी वे अपने आपको परमात्मा रूप में गिनाएँ और भक्तगण उनकी जिनवत् आराधना करें यह कहाँ का न्याय ? यह ढंग तो श्वेताम्बर अथवा दिगम्बर किसी को भी मान्य नहीं है। क्योंकि साधु दीक्षा के पूर्व ही कदाचित किसी को केवलज्ञान हो तो भी जब देवता उन्हें मुनिवेष दें और वे अंगीकार करें तब ही उन्हें वंदनादि किया जा सकता है, उसके पूर्व नहीं ही- यह श्वेताम्बर कथन है और कम से कम अंतर्मुहूर्त काल पूर्व ही मुनिवेष धारण किए बिना तो किसी को भी केवलज्ञान हुआ नहीं है और होनेवाला नहीं है। यह दिगम्बर कथन है। जब श्रीमद् ने न तो ओघा मुहपत्ति या पीछी कमंडल लिए, न तो वे सम्पूर्ण केवली बन सके, फिर भी वे उपास्यपद पर कैसे उपादेय हो सकते हैं ? समाधान : जिसे दर्शन विशुद्धि करनी हो वैसे आत्मार्थी साधक 35

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