Book Title: Upasya Pade Upadeyta
Author(s): Pratap J Tolia
Publisher: Jina Bharati

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Page 40
________________ करके विविध उपायों में प्रवर्तन करते हुए भी मोक्ष प्राप्त करने के बजाय संसार परिभ्रमण करते हैं; यह जानकर हमारा निष्कारण करुणाशील हृदय रो रहा है।' __वर्तमान में विद्यमान वीर को भूला देकर भूतकाल की भ्रमणा में वीर को खोजने के लिए भटकते-टकराते जीवों को श्री महावीर का दर्शन कहाँ से होगा ?' 'हे दुषमकाल के दुर्भागी जीवों ! भूतकाल की भ्रमणा को छोड़कर वर्तमान में विद्यमान ऐसे महावीर की शरण में आओ तो तुम्हारा श्रेय ही है।' ___संसारताप से त्रस्त-संतप्त और कर्मबंधन से परिमुक्त होने के इच्छुक परमार्थप्रेमी जिज्ञासु-जीवों की त्रिविध तापाग्नि को शांत करने के लिए हम अमृतसागर हैं। मुमुक्षु जीवों का कल्याण करने हेतु हम कल्पवृक्ष ही हैं।' 'अधिक क्या कहना ? इस विषमकाल में परमशान्ति के धामरूप हम दूसरे श्री राम किंवा श्री महावीर ही हैं, क्योंकि हम परमात्मस्वरूप हुए हैं।' ___ 'यह अंतर अनुभव परमात्मस्वरूप की मान्यता के अभिमान से उद्भुत बना हुआ नहीं लिखा है, परन्तु कर्मबंधन से दु:खी हो रहे जगत के जीवों पर परम कारुण्यभाव उत्पन्न होने से, उनका कल्याण करने की ओर उनका उद्धार करने की निष्कारण करुणा ने ही, यह हृदय चित्रण, प्रदर्शित करने की लिखने की प्रेरणा की है। मुम्बई चैत्र 30

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