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वीतराग हो सकता है।' - पत्रांक 334 ___'हम कि जिसका मन प्राय: क्रोध से, मान से, माया से, लोभ से, हास्य से, रति से, अरति से, भय से, शोक से, जुगुप्सा से अथवा शब्दादिक विषयों से अप्रतिबद्ध जैसा है, परिवार से, धन से, पुत्र से, वैभव से, स्त्री से, या देह से मुक्त जैसा है।' - पत्रांक 347 _ 'समय मात्र के लिए भी अप्रमत्तधारा को विस्मृत नहीं करने वाला ऐसा जो आत्माकार मन, वह वर्तमान समय में उदय के अनुसार प्रवृत्ति करता है।' - पत्रांक 353 __'मन में बार-बार विचार करने से निश्चय हो रहा है कि किसी भी प्रकार से उपयोग बदल कर अन्यभाव में अपनापन (ममत्व) नहीं होता, और अखण्ड आत्म ध्यान रहा करता है।' - पत्रांक 366 ___ 'हम तो पाँच महीने से जगत, ईश्वर और अन्यभाव इन सभी के विषय में उदासीनतापूर्वक बरतते रहते हैं। मोक्ष तो हमें सर्वथा निकटता से रहता है, यह तो निःशंक वार्ता है। वैशाख कृष्णा 6, मंगल 1948' - पत्रांक 368 ___ 'अविच्छिन्नरुप से जिनके विषय में जिन्हें आत्मध्यान बना रहता है ऐसे श्री........ के प्रणाम प्राप्त हों। जिसमें अनेक प्रकार की प्रवृत्ति बनी रहती है, ऐसे योग में अभी तो रहते हैं। उनमें आत्मस्थिति उत्कृष्टरूप से विद्यमान रहती देखकर श्री........ के चित्त को स्वयं अपने आपसे नमस्कार करते हैं।' - पत्रांक 370 ‘अविषम रूप से आत्मध्यान जहाँ प्रवर्तमान रहता है, वास करता
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