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श्रीमद् राजचन्द्र उपास्यपद पर उपादेयता
इस अवसर्पिणी काल में इस क्षेत्र में 10 अच्छेरे (आश्चर्यजनक घटनाएँ) पूर्व में माने गए हैं। उनके पश्चात् अच्छेरा रुप श्रीमद् राजचन्द्रजी का इस क्षेत्र में जन्म हुआ। महाविदेह का ही वह परमपात्र भूल से इस भरतक्षेत्र में आ चढ़ा और तत्पश्चात् महाविदेह सिधार गया। बाल्यकाल से बीता हुआ उनका विदेही जीवन उनकी महाविदेही दशा की प्रतीति कराता है।
अपनी लेखिनी द्वारा स्वपर हितार्थ निभ-रूप से लिखित आत्मचर्या में श्रीमद् के अलौकिक जीवन के स्पष्ट दर्शन होते हैं। तत्संबंधित कुछ जीवन प्रसंग अन्य लेखकों द्वारा आलेखित अनेक ग्रंथों में कुछ स्थानों में पाठक वृंद को देखने को मिलेंगे, जबकि इस लेख में श्रीमद् की क्षायिक सम्यक् दृष्टि और उत्कृष्ट अप्रमत्तदशा के कारण आगम प्रमाण एवं अनुभव प्रमाण से उपास्यपद पर उपादेयता सिद्ध करने का यत्किंचित् प्रयत्न पाठकवृंद देख सकेगा। जिसका तटस्थ बुद्धि से अवगाहन करने से गुणानुरागी साहसिक साधकों को अद्भुत प्रेरणा प्राप्त होगी।
श्रीमद् राजचन्द्रजी क्षायिक सम्यग्दृष्टा, अखण्ड स्वरूपज्ञानी और उत्कृष्ट अप्रमत्त योगी थे। इस बात की प्रतीति करने हेतु सर्वप्रथम
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