________________
अनेक देश-प्रदेश में अनेक गुफाओं और एकांत वनोपवनों में विचरण करते हुए अनेक धर्मों के त्यागी तपस्वी तथा सद्गृहस्थों का परिचय हुआ। उनमें से विशेष परिचय में आए हुए कुछ भाविकों ने भक्ति भावना वश प्राप्त आध्यात्मिक अनुभव का लाभ दूसरों को मिले उस हेतु आश्रम पद्धति को उचित मानकर अपने खर्च से आश्रम बांध देने की इच्छा प्रदर्शित की, परन्तु भीतर के आदेश के बिना किसी का भी स्वीकार नहीं किया। विशेष में पहले से स्थापित 'श्रीमद् राजचन्द्र विहार भवन, इडर, श्रीमद्रराजचन्द्र आश्रम, अगास, श्रीमद् राजचन्द्र आश्रम, वडवा तथा श्रीमद् राजचन्द्र जन्म भुवन, ववाणिया आदि में इस देहधारी को स्निग्ध आमंत्रण भी प्राप्त हुए थे। उपर्युक्त सारे स्थानों में जब-जब इस देहधारी को स्थिर होने हेतु आमंत्रण मिला, तब-तब इस आत्मा में ऐसा अंतर्नाद सुनाई देता रहा कि तेरा उदय दक्षिण में है।'
दक्षिण भारत के कर्णाटक प्रदेश में गोकाक की जैन गुफाओं में दि. 22.02.1954 से दि. 22.05.1957 तक तीन वर्ष अखण्ड मौन पूर्वक की साधना यह देहधारी करके गया था, परन्तु तथा प्रकार के समवाय कारण के अभाव से हंपीतीर्थ पर आ नहीं सका। लेकिन आखिर में महाराष्ट्र के बोरड़ी गाँव में संवत् 2017 के प्रथम ज्येष्ठ शुक्ला पूर्णिमा पर्यंत के 21 दिन के अनायास सधे गए चिरस्मरणीय सत्संग प्रसंग के बाद महाराष्ट्र के कुम्भोज तीर्थ पर आया। वहाँ से गदग के कच्छी बंधु गदग ले आए। वहाँ से बेल्लारी
16