Book Title: Uktiratnakara
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 32
________________ उक्तिरत्नाकर विधन विघ्नः। परिचउ परिचयः । काज कार्यम् । ऊपरि उपरि । आगइ अग्रतः। सांप्रत सांप्रतम् । अरिहंतभणी नमो अर्हते नमः । सद्दहियउ अद्धितम् । वांकउ वक्रम् । कुंपल कुड्मलम् । मणसिल मनःशिला। सुमिणउ स्वप्नः । पीहर पितृगृहम् । आलउ आर्द्रम् । सिढिल शिथिलम् । करीस करीषः। गुहिरउ गम्भीरम् । विहूणउ विहीनः । पीठ पीठम् । मउर मुकुरम् । गरुयउ गुरुकम् । भिंगार भृङ्गारः। वींट वृन्तम् । सिंगार शृङ्गारः। रिणउ ऋणम् । गारवउ गौरवम् । गउरवान गौरं गौरवर्णं च। सांकलउ शृङ्खलम् । छांह छाया । नीमी नीवी। झीणउ क्षीणम् । खोडउ वो(क्षौः) टकः। जट्ट जत्तः । भसम भस्म । दाहिणउ दक्षिणः । कोहली कूष्माण्डी। सलाह श्लाघा । हलुअउ लघुकः । सीप शुक्तिः। मइलउ मलिनम् । छोति छुप्तिः। अछूतउ अच्छुप्तः । हेठइ अधः। तुम्ह केरउ युष्मदीयः । अम्ह केरउ अस्मदीयः । एकलउ एकः (एककः)। नवलउ नवः । पीलउ पीतम् । काठउ गाढम् । जेवडउ यावान् । तेवडउ तावान् । वीच वर्म। वहिलउ शीघ्रम् । झगडउ झगटकः । कोड कौतुकम्। जुआ जुआ पृथक् पृथक् । समधात समधातुः। गीत धातइ गायउ गीतं धातुना गीतम् । आगइ वाघ अग्रे व्याघ्रः । पाछइ दोतडि पश्चादुस्तटी। वरतरकाटिवउ वरत्राकर्तनम् । सड्यउ शटितम् । मांडी मण्डिका । लापसी लपनश्रीः। गुलमंडा गुडमण्डका। वीनती विज्ञप्तिः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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