Book Title: Uktiratnakara
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
View full book text
________________
३८
लाजइ लज्जते ।
सरजइ सृजति ।
कूटइ कुट्टयति ।
खेडइ खेटयति ।
घट घटयति ।
चूंटइ चुण्टयति ।
तोडइ त्रोटयति । त्रुटति ।
मोडइ मोटयति ।
लूटइ लुण्यति ।
फोडइ स्फोटयति ।
फूटइ स्फुटति ।
लुठइ लुठति । ओलंडइ ओलण्डयति ।
क्रीडइ क्रीडति ।
खंडइ खण्डयति । जोडइ जोडयति ।
बूडइ ब्रडति ।
मांडइ मण्डयति ।
पीडइ पीडति ।
कीर्त्तइ कीर्त्तयति ।
चींतवइ चिन्तयति ।
नाचइ नृत्यति ।
पडइ पतति ।
आपडइ आपतति ।
ऊपडइ उत्पतति ।
कुहइ कुथ्यति ।
मथइ मश्नाति ।
आक्रंदइ आक्रन्दयति । कूद कूर्दते ।
खायइ खादति ।
निंदs निन्दति । पादइ पर्दते ।
पण्डितप्रवर श्री साधुसुन्दरगणि-कृत
मर्दइ मृगाति ।
रोयइ रोदिति ।
वांदइ वन्दते ।
Jain Education International
Parsa |
हग हदते ।
ऊपज उत्पद्यते ।
नीज निष्पद्यते । संपजइ संपद्यते ।
बांधइ बध्नाति ।
बूझ बुध्यते ।
झूझइ युध्यते ।
रूंधइ रुणद्धि ।
रांधइ राध्यति ।
आराधइ आराध्यति ।
सूझइ शुध्यति ।
सीझइ सिध्यति ।
साध साध्नोति ।
वीधर विध्यति ।
खणइ खनति ।
जामइ जायते ।
मानइ मानति ।
हणइ हन्ति ।
आपइ अर्पयति ।
कुपइ कुप्यति ।
कांप कम्पते ।
कलप कल्पते ।
जपइ जपति ।
तप तपति ।
दीपइ दीप्यते ।
धूपइ धूपयति ।
लींपइ लिम्पयति । लोपइ लुम्पति । चुंबइ चुम्बति ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136