Book Title: Uktiratnakara
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 131
________________ वीझणउ ९,२ वीझाइ १८, २ वीझायइ ४२, १ वीझावइ ४२, १ वीठ ९,१ वीणि ६८,१ वीधइ ३८, २ वीध्यउ १४, २ वीनति १५, २ वीनवइ ४१, २. ४८, १. वीनवियूँ ५३, २ वीनव्यउ ५०,२ वीवाहइ ४१,२ वीवाहपगरण २०, १ वीस २८, २ वीसमइ ४३, १ वीसमड ३०, २.५७, १ वीसमी ३१, १ वीसरइ ४०, १ वीसरिउ ५१, २ वीससह ४४, १. ४६, २ वीट १५, १.२०,२ वीटइ ४३, १ वींटणउ २१, १ वीट्यउ १४, २ वुहरउ ३२, २ वूठउ ५१,१ दूसट (प्र०) ६६, २ वृक्ष कन्हलि घरु ७५, ५ वृक्ष सामहुं आभउं ७३, २ वृक्षु ७४, २. ७५, १ वृद्ध ७९,२ वृषभनउ समूहु ७६, ३ उक्तिरत्नाकरादि अन्तर्गत वेचा ४७,१ शोभइ ४९, १ वेचावइ ४७, १ शोभिउ ५१,२ वेचिर्बु ५४, १ श्राद्धतणइ ७२, २ वेच्यउ ५०,१ श्रीगरणु ६८,२ वेझ ९, २ श्रीवच्छ ६, २ वेठि २३, २ श्रीवासुदेव दैत्य मारइ ७२, २ वेढिमी २२, २ श्रेष्ठ ७२, २ वेद ७२, १ श्लाघइ ४७, १ [श्लाघिउ] ५२, १ वेयइ ३०,२ श्लाधिवू ५३, १ वेरा १२, १ श्लोक ७२, २ .. वेलि १२, १ वेलू ३५, १ वेस ९, १ ष (ख) ईइ ४९,१ वेसर (प्र०) ६६, १ ष (ख) मइ ४६, ७ षा (खा) इ ७७, १ वेसरु ६६,२ षा (खा) णीकणउं ६७, २ वेसवार ७,१ षा (खा) धुं ५०, १ वेसावाडउ २०, २ षा (खा) वडं "२, २ वेहणउ ३४, १ वैद्य ७४, २ षा (खा) सइ ४६, १ षां (खां) ड योग्य वैष्णवु रातिं च्यारइ । पुहुर जागइ । षां (खां) ड्या ७८, १ व्यहु परि ६३, १ षि (खि) सह ८०,२ व्याऊ ७,२ षि (खि)सरहिडी (प्र०) ६६, १ व्याकरणु ७७, १ षी (खी) लउ ७३, १ व्यारीउ ७३, ५ षी (खी)लायोग्य १७७,१ व्यासन उं ग्रामु ७२, २ हितूउं लाकडउं । व्रणरउ २४, षी (खीख) ष नही (प्र०) ६४,३ श धू (खू) दइ ४६, ७ शपइ ७०,२ थे (खे) डइ ४७, २ शब्दु ७८, . शमिउ ५१,२ सहतालीस २९, १ शरकड ७७, १ सइंत्रीस २८, २ शरत्कालनउ तिडकउ ७८,सउ ३०, १.७१, २ शलाटु ६७,१ सउगडउ., शापइ ४८,२ सउडि ३२, २. ६६, २ शास्त्र ७२, १ सउण १४, शिष्य ७५, १ सउणी १६,२ शिष्यपाहि ७३, १ . सउमउ ३१,. शोचइ ४९, १ सउ वार (प्र०), ७७, २ ७E हतूई सेलडी वेउल ३३, १ वेगउ १६, १ वेगड ३२, २. वेगडि ६६, २ वेगडी (प्र०) ६६, ३ वेगलड ७९,२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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