Book Title: Uktiratnakara
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ ४२ करडइ कुन्तति । पण्डितप्रवर श्रीसाधुसुन्दरगणि-कृत बालइ ज्वालयति । सूअइ खपिति । मोलइ मृदु लुनाति । फेडइ स्फेटयति । विढइ विध्यति । पसीअइ प्रसीदति । माचइ माद्यति । ऑढइ अवगुण्ठते । दूमइ दुनोति । प्रोअइ प्रवयति । सुणइ शृणोति । वणइ वयते। दीखइ दीक्षते । प्रेरइ प्रेरयति । सुहायइ सुखायति । वलइ वलते। विगोवइ विगोपयति, विगूयति । आलिंगइ आलिंगति । विगूयइ विगूप्यति । वाअइ वादयति । नरनरइ नदति । छायइ छादयति । थवइ स्थगयति । लाडइ ललति । मनावइ मानयति । काट द्रउडइ द्रुताटयति । नांखइ निःक्षिपति । कुसइ क्रोशति । पखालइ प्रक्षालयति । निरंजइ नियोजयति, नियन्त्रयति वा । धोअइ धावति । कसइ कषति । संधूखइ संधुक्षते । लुणइ लुनाति । सांचइ संचिनोति । कींगायइ केकायते । अउगनाइ अपकर्णयति । खोडायइ खोडायते। ऊजालइ उज्वलयति । विहडइ विघटते। गांठइ ग्रन्थते ( प्रथ्नाति )। मीचइ मीलति । चूअइ चोतति । ऊजाइ उद्याति । थीजइ स्त्यायते। अवहथइ अपहस्तयति । वीझायइ विध्यायति । मानइ मन्यते । वीझावइ विध्यापयति । वासइ वासयति । वाधइ वर्द्धते । आलूजइ अलमुज्जति । खीलइ कीलति । पहिरइ परिदधाति । ऊमटइ उन्मज्नति । छेदइ छेदयति। पसवइ प्रसवति । पसीजइ प्रखिद्यते । मायइ माति । तीमइ तेमयति । भणइ भणति । अडवडइ अधःपतति, अधःपूर्वः पतः । पढइ पठति । सिणमिणइ शनैर्मिनोल्यम्बुदः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136