Book Title: Uktiratnakara
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir
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४३
अडइ अडुति।
उक्तिरत्नाकर बसवसइ बहु स्यन्दति भूमिः । उंजइ उदञ्जयति ।
वावइ वपति । उघडइ उद्धटते।
छिवइ छुपते, स्पृशति वा । फीटइ स्फिटते ।
छूटइ छुट्टति । सूकइ शुष्कति ।
उखेलइ उत्कीलयति । खूदइ क्षुन्ते, क्षुणत्ति वा।
खीलइ कीलति । सीदाअइ सीदति ।
वघारइ व्याघारयति । ऊगटइ उद्वर्त्तयति ।
वखाणइ व्याख्यानयति। भेदइ भिनत्ति ।
सकइ शक्नोति । सरवइ श्रवति ।
दंभइ दनोति । खीजइ खिद्यते ।
परवारइ अपारयति । विआरइ विप्रतारयति ।
वारइ वारयति । विंहचइ विभजति ।
निवारइ निवारयति । खडहडइ खटत्पतति ।
वरांसीयइ विपर्यस्यति । गलअलइ गलगिलति ।
पल्हालइ पर्याद्रवयति । पतीजइ प्रत्ययते, प्रत्येति, प्रतीयते वा । पालवइ पल्लवयति । पवीत्रइ पवित्रयति ।
पचारइ प्रत्युच्चारयति । पालटइ परावर्तयति, परिवर्त्तयति वा । थाहरइ स्थानमाहरति । हडहडइ हटाद्धसति, हडहडयति वा । आयसइ आदिशति । परीसइ परिवेषयति ।
टलवलइ टलद्वलति । वींटइ वेष्टते ।
कलकलइ कलकलयति । ऊवेढइ उद्वेष्टते।
झणझणइ झणऽझणयति। समेटइ समेटयति ।
वाधइ वर्द्धयति । वीसमइ विश्राम्यति ।
हसइ हसति । चडइ चटति ।
सहइ सहते। अउलवइ अपलपति ।
आखुडइ आस्खलति । आचमइ आचामति ।
रंजइ रञ्जयति । ऊपणइ उत्पवते।
सपइ शपति। वीकइ विक्रीणाति ।
फडफडइ पटपटायते । उघडइ उद्घटते।
कडकडइ कटकटायते, चक्षुः । ऊघाडइ उद्घाटयति ।
उदेगइ उद्वेगयति । ऊठइ उत्तिष्ठति ।
हीडइ हिंडते। नीठइ निस्तिष्ठति।
ऊकदइ उत्कूदते ।
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