Book Title: Uktiratnakara
Author(s): Jinvijay
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 82
________________ अविज्ञातविद्वत्संगृहीतानि औक्तिक पदानि । उक्त व्यहु प्रकारि - कर्त्ता, कमि, भावि, कर्मकर्त्ता । जउ उक्ति पाधरी हुइ - उक्तिमाहि कर्त्ता कर्म हुइ ते उक्ति कर्त्ती जाणिवी चांकी उक्ति हुइ तु माहि कर्त्ता हुइ, कर्म न हुई तउ ते उक्ति भावि जाणिवी । जु कर्म्म फीटी कर्त्ता आविउ हुइ, ते उक्ति कर्मकर्त्ता जाणिवी । कर्त्ता परस्मै पद दीजइ । कम्मि भाविं 1 आत्मनेपद दीजइ । पुरुष केता ? ३ । कुण कुण ? प्रथम, मध्यमु, उत्तमु । नामि बोलावीय ते प्रथमपुरुष । तु हि मध्यम पुरुष हुइ । हुं अम्हि उत्तम पुरुष | काल केता ? ३ । कुणकुण? वर्त्तमान, अतीत, भविष्य । वर्त्त वर्त्तमानु, व अतीतु, वर्त्तसिइ भविष्यु । वर्त्तमानकालि ३ विभक्ति हुइ - वर्त्तमाना, सप्तमी, पंचमी । अतीत कालि ४ बिभक्ति—ह्यस्तनी, अद्यतनी, परोक्षा, स्म संयोगि वर्त्तमाना । भविष्यकालि ३ विभक्ति - भविष्यन्ति, आशिः, श्वस्तनी | करइ, लिइ, दिइ; करत, ल्यथ [द्यथ ?]; करूं ल्युं, घुं, इसइ बोलि वर्त्तमान कालु | वर्त्तमानानुं परस्मैपदु दीजइ । कीजइ, लीजइ, दीजइ; कीज, लीज, दीज; कीजुं, दीजुं, लीजुं; इसइ बोलि वर्त्तमानु कालु वर्त्तमानानुं आत्मनेपदु दीजइ । । करिजे, लेजे, देजे; इसइ बोलि वर्त्तमानु कालु । सप्तमीनुं परस्मैपद दीजइ । कीजिजे, लीजिजे, दीजिजे; इसइ बोलि वर्त्तमानु कालु । सप्तमीनुं आत्मनेपद दीजइ । करइ, लिइ, दिइ; करउ, लिउ, दिउ; इसइ बोलिवइ वर्त्तमानु कालु । पंचमीनुं परस्मैपदु दीजइ । ६५ करतउ, लेतउ, देत; करता, लेता, देता; करती, लेती, देती; करतउं, लेतउं, देतउं; इसइ बोलिवइ अतीत कालु । ह्यस्तनी अद्यतनी परोक्षानुं परस्मैपदु दीजइ । कीजउ, लीजउ, दीजउ, इसइ बोलि वर्त्त - मानु कालु | पंचमीनुं आत्मनेपदु दीजइ । उ०र०९ Jain Education International कीधुं, लीधुं, दीघुं; कीधा, लीधा दीधा; कीधी, लोधी, दीधी; इसइ बोलिवइ अतीत कालु । ह्यस्तनी अद्यतनी परोक्षानुं आत्मनेपद दीजइ । करिसिइ, लेसिइ, देसिइ; करसुं, लेसुं, देसुं; करिस्यडं, लेस्यउं, देस्यउं; इसइ बोलिवइ भविष्यु कालु । भविष्यन्तीनुं परस्मैपदु दीजइ । करीसिह, लीजसिह, दीजसिह; इसइ बोलि भविष्य कालु | भविष्यन्तीनुं आत्मनेपदु दीजइ । भविष्यकालि आशीर्वादयोगी आशीर्विभक्ति दुइ; अनइ भविष्य कालि योगि श्वस्तन विभक्ति दीजइ । भविष्यंतीनी वाणी बोलीइ । बोलिवइ अतीत कालु। क्रियातिपत्तीनउं परस्मैपद जउ-जु करत, जु लेत; जु देत; इसि दीजिइ । जु कीजत, जु दीजत, जु लीजत; इसिइ बोलिवइ अतीत कालु । क्रियातिपत्तिनउं आत्मनेपद दीजइ । कर्ता परस्मैपद दीजइ, कमि आत्मनेपदुदीजइ । I अथ त्यादि विभक्ति केती ११० । कुण कुण : वर्त्तमाना १, सप्तमी २, पंचमी ३, ह्यस्तनी ४, अद्यतनी ५, परोक्षा ६, श्वस्तनी ७, आशीः ८, भविष्यन्ती ९, क्रियातिपत्ती १० । अकेकी विभक्तिं १८ वचन - ९ परस्मैपद तणां, ९ आत्मनेपद तणां । ति, तस्, अन्ति; सि, थस, थ, मि, वसू, मसू, इं नव परस्मैपद तणां । ते, आते, अन्ते, से, आथे, ध्वे, ए, वहे महे; इं नव आत्मपद तणां । ति तस्, अन्ति; इति प्रथमपुरुषः । सि, थस्, थः इति मध्यमपुरुषः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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