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है। एक इतना सूक्ष्म परिणमन है जो हमारी आँखों का विषय नहीं बनता पर वास्तव में हो रहा है।" उस परिणमन की व्याख्या में दो प्रकार बतला दिये गए - सादि पारिणामिक भाव और अनादि पारिणामिक भाव। अस्तित्व जितना है पांच द्रव्य हैं, पांच अस्तिकाय हैं वे अनादि पारिणामिक भाव हैं। इनका कोई आदि बिन्दु नहीं है कि यह कब से हुआ। यह अनादि परिणमन है, निरन्तर परिणमन होता रहता है। उनमें स्थिरता नहीं है, जड़ता नहीं है, निरन्तर गतिशीलता है। जितना भी अस्तित्व है, गतिशील है, निरन्तर गति करता रहता है। एक नियम भी इस आधार पर बन सकता है कि जिसमें गतिशीलता नहीं है, उसका अस्तित्व भी नहीं है। जिसका अस्तित्व है, उसमें गतिशीलता है। अस्तित्व और गतिशीलता दोनों को शायद अलग नहीं किया जा सकता। वह गतिशीलता चाहे परिस्पन्दात्मक हो या अपरिस्पन्दात्मक किन्तु गति निश्चित होगी।
जो हमें दिखाई दे रहा है, वह सारा सादि पारिणामिक भाव है। आज एक वस्तु बनी कुछ समय के बाद वह वस्तु नष्ट हो जाती है। कपड़ा बना और कुछ समय बाद कपड़ा फट गया। मकान बना, कुछ समय बाद मकान भी नष्ट हो गया। यह सारा सादि परिणमन है। ये बादल बनते हैं, यह भी सादि परिणमन है। आकाश में मंडराये और कुछ समय बाद साफ हो गये।
अनादि परिणमन के बिन्दु पर ही ईश्वर की चर्चा शुरू हो जाती है। यह संसार अनादि है या सादि ? यदि सादि है तो उसका कोई कर्ता होना चाहिए। चाहे मनुष्य हो, चाहे कोई शक्ति हो, चाहे कोई पुद्गल का ही संयोग हो। कोई-न-कोई कर्ता अवश्य होगा। जो अनादि है, वहां कर्ता नहीं हो सकता। कर्ता की अपेक्षा नहीं है, क्योंकि उसमें एक प्रश्न की श्रृंखला, तर्कशास्त्र में जिसको कहते हैं, अनवस्था आ जाती है। अनादि का कोई कर्ता है तो उसका कर्ता कौन है?
अस्तित्व सारे अनादि हैं, अकृत हैं। किसी के द्वारा कृत नहीं हैं। कोई उसका कर्ता नहीं है। ईश्वरवादी मानते हैं कि यह विश्व ईश्वर के द्वारा कृत है। सूत्रकृतांग सूत्र में एक वचन भी आता है - ईसरेण कड़े लोए - लोक ईश्वर के द्वारा कृत है। दूसरा विचार यह आया कि यह संसार अकृत है, अनादि है। अनादि है वहां फिर कृत की कोई जरूरत नहीं। अनादि को भी कृत माने तो फिर यह प्रश्न होगा कि ये सारे पदार्थ हैं, द्रव्य हैं, पहले नहीं थे फिर बनाये गये। अगर पहले नहीं थे, फिर बनाये गये तो सारी की सारी सृष्टि काल्पनिक सी हो गयी, कृत्रिम हो गयी। वह पहले कैसा था और फिर बनाया गया तो क्या बनाया गया ? बनाने का प्रयोजन क्या? आदिआदि तर्कशास्त्र में बहुत प्रश्न हैं। जहां अनादित्व है वहाँ कर्तृत्व की कोई अपेक्षा नहीं है।
___ एक प्रश्न आया - कर्ता नहीं है पर कोई नियमन करने वाला तो होगा? कर्ता नहीं है, कोई नियमन नहीं कर रहा है तो इतनी बड़ी दुनियां कैसे चलेगी? हम अपने शरीर को देखें, हमारी नाड़ी तंत्र में भी दोनों प्रकार की क्रियाएँ होती हैं। इच्छा चालित भी है और स्वतः चालित भी है। स्वत: चालित भी दुनिया में होता है, नियम से भी होता है। नियंता होना आवश्यक नहीं है।
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तुलसी प्रज्ञा अंक 138
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